शून्य का खोज किसने किया? प्राचीन समय में जब अन्य लोग जीवन जीने का तरीका सिख रहे थे तब भारतवर्ष में वैज्ञानिक जीवन जिया जा रहा था. जब सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातत्व मिले हैं तब पूरी दुनिया ने इस बात को स्वीकारा. आज भी विज्ञान के क्षेत्र में भारत कई विकसित देशो से आगे हैं. लेकिन दुःख की बात यह हैं की हमे हमारी कई उपलब्धियों का क्रेडिट नही मिला.
भले ही वह भगवान महावीर के द्वारा ‘सूक्ष्म जीवो’ के बारे में बताना हो या महर्षि कणाद के द्वारा ‘परमाणु’ के बारे में. लेकिन कुछ चीजो का श्रेय हमे दिया गया जिसमे से एक ‘शून्य (Zero) का अविष्कार‘ भी हैं. इस लेख में हम ‘ज़ीरो का अविष्कार किसने और कब किया’ के विषय पर बात करेंगे.
वैसे तो शून्य (जीरो) का योगदान हर क्षेत्र में है लेकिन इसे गणित के सबसे बड़े अविष्कारों में से एक गिना जाता हैं. एक बार सोचकर देखिए अगर ज़ीरो की खोज ना होती तो आज गणित कैसी होती? गणित तो होती लेकिन आज जितनी सटीक नहीं. यही कारण हैं 0 का अविष्कार सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में शामिल किया जाता हैं.
जैसे ही शून्य के अविष्कार की बात आती हैं, हमारे दिमाग में कई सवाल उठने लगते हैं. ज़ीरो का आविष्कार किसने किया? जीरो का अविष्कार कब हुआ? जीरो के अविष्कार से पहले गणना कैसे होती थी और जीरो के अविष्कार का क्या महत्व हैं? इस लेख में हम जीरो के अविष्कार से लेकर इसके इतिहास पर विस्तार से बात करेंगे.
[toc]शून्य क्या हैं?
शून्य एक गणितीय अंक हैं जिसे सामान्य भाषा में संख्या कहा जा सकता हैं. वैसे तो जीरो का कोई मान नही होता लेकिन यह किसी संख्या के लग जाए तो उसका मां दस गुना बढा देता हैं जैसे की 1 के आगे जीरो लग जाए तो 10 और 10 के आगे ज़ीरो लग जाए 100!
लेकिन अगर Zero की किसी संख्या के आगे लगाया जाए तो उसका मान वही रहता हैं जैसे की 99 के आगे 0 लगा दे तो वह 099 होगा यानी की संख्या का मान घटेगा या बढ़ेगा नहीं. अगर जीरो को किसी संख्या से गुणा किया जाए तो 0 ही आएगा और अगर 0 में किसी संख्या का भाग दिया जाए तो उत्तर अनन्त (Infinity) आएगा.
Zero के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
बता दे की शून्य (जीरो) गणित में पूर्णांक (Integers), वास्तविक संख्या या किसी अन्य बीजीय संरचना (Algebraic Structures) की योगात्मक पहचान (Additive Identity) के रूप में काम करता हैं. वही शून्य का Place Value System में स्थानधारक (Placeholder) के रूप में भी प्रयोग किया जाता हैं.
शून्य को अंग्रेजी में Zero के साथ Nought (UK) और Naught (US) भी कहते हैं. सरल भाषा में शून्य सबसे छोटी संख्या होती हैं जो no-negetive संख्या होती हैं लेकिन इसका कोई मान नही होता.
शून्य का अविष्कार किसने किया था?
शून्य के अविष्कार से पहले गणितग्यो को संख्याओं की गणना करने में और कई गणीतिय प्रश्नों का हल करने में दिक्क्त होती थी. देखा जाए तो शून्य का अविष्कार गणित के क्षेत्र में एक क्रांति जैसा हैं. अगर शून्य का अविष्कार नही होता तो शायद गणित आज जितनी मुश्किल हैं उससे भी कई गुना मुश्किल होती.
आज हम जिस तरह से 0 का प्रयोग कर रहे है और हमारे पास शून्य की जो सटीक परिभाषा मौजुद हैं उसके पीछे कई गणितज्ञ और वैज्ञानिकों का योगदान शामिल हैं. लेकिन शून्य जे अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं. क्योंकि उन्होंने ही शुरुआत में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था.
ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था इसलिए कई लोग आर्यभट्ट को भी शून्य का जनक मानते थे. लेकिन सिद्धांत ना देने के कारण उन्हें शून्य का मुख्य अविष्कारक नही माना जाता. शून्य के अविष्कार को लेकर शुरुआत से ही मतभेद रहे हैं. क्योंकि गणना काफी पहले से की जा रही है लेकिन बिना शून्य के यह असम्भव प्रतीत होती हैं.
पर ऐसा नही हैं, पहले भी लोग शून्य को विभिन्न प्रकार से बिना किसी सिद्धांतो के उपयोग करते थे और इसका कोई प्रतीक भी नही था. ब्रह्मगुप्त ने इसे प्रतीक और सिद्धांतो के साथ पेश किया और गणितज्ञ व ज्योतिषी आर्यभट्ट ने इसका उपयोग किया था.
जीरो का अविष्कार कब और कहां हुआ था?
जीरो के अविष्कार के काफी पहले से ही कई प्रतीकों को स्थानधारक के रूप में उपयोग किया जा रहा था. ऐसे में यह साफ नही कहा जा सकता की शून्य का अविष्कार कब हुआ लेकिन 628 ईसवी में महान भारतीय गणितज्ञ ‘ब्रह्मगुप्त‘ ने शून्य का प्रतीकों और सिद्धांतो के साथ सटीक रुप से उपयोग किया.
ज़ीरो का इतिहास – Zero History in Hindi
शून्य के अविष्कार को समझने के लिए शून्य के इतिहास को समझना काफी जरूरी हैं. आज के समय के शून्य के सिद्धांत और इसके प्रयोग काफी आधुनिक हैं. लेकिन शुरुआत में लोग इसे ऐसे उपयोग नही करते थे. अगर देखा जाए तो इसका अविष्कार एक स्थानधारक के रूप में हुआ और बाद में धीरे धीरे इसके उपयोग बढ़े.
ब्रह्मगुप्त के द्वारा शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का प्रयोग किया जा रहा था. जी हा, कई प्राचीन मंदिरों के पुरातत्वो और ग्रंथों में इसे देखा गया हैं. ऐसे नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता कि 0 का आविष्कार कब हुआ और इसका प्रयोग कब से हो रहा है लेकिन यह निश्चित हैं यह भारत की ही देन हैं.
आज से कुछ सालो पहले तक एक देश से दूसरे देश में जाना ही मुश्किल होता था तो हम तो सदियों पहले की बात कर रहे हैं. तब संचार के साधन नही थे यानी की दुनिया के एक कोने में रहने वाले व्यक्ति को यह भी नही पता की दुनिया के दूसरे कोने में भी कोई रह रहा हैं.
सभी लोग अपने अपने तरीके से रह रहे थे और अपनी अपनी गति से विकास कर रहे हैं. साफ है की गणना हर सभ्यता में की जा रही थी लेकिन संख्याओं के प्रतीक अलग-अलग थे. शुरुआत में शून्य मात्र एक स्थानधारक था. लेकिन बाद में यह गणित का एक अहम भाग बन गया.
कहा जाता हैं की शून्य का कॉन्सेप्ट तो काफी पुराना है लेकिन यह 5वी शताब्दी तक भारत में पूर्ण रूप से विकसित था. गणना प्रणाली को शुरू करने वाले सबसे पहले लोग सुमेर निवासी थे. बेबीलोन की सभ्यता ने उनसे गणना प्रणाली को स्वीकार किया. जब यह गणना प्रणाली प्रतीकों पर आधारित थी.
इसका अविष्कार 4 से 5 हजार वर्ष पहले हुआ था. बेबीलोन की सभ्यता ने कुछ प्रतीकों का इस्तेमाल स्थानधारक (placeholder) के रूप में किया. यह स्थान धारक 10 और 100 के बीच में अंतर बनाता था और 2025 जैसी संख्याओं को पूरा करता हैं.
बेबीलोन की सभ्यता के बाद मायानो ने 0 को प्लेसहोल्डर के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया. उन्होंने पंचांग प्रणाली के निर्माण में इसका उपयोग शुरू किया. लेक्क़ीन उन्होंने कभी भी गणना में 0 का इस्तेमाल नही लिया. इसके बाद भारत का नाम आता हैं जहा से 0 अपने आज के रूप में आया.
काफी सारे लोग इस बात को मानते हैं कि 0 बेबीलोन की सभ्यता से भारत में आया लेकिन अधिकतर लोगों ने इस बात को स्वीकार है कि 0 पूर्ण रूप से भारत नहीं डिवेलप हुआ और यहां से पूरी दुनिया में फैला.
Zero को भारत में शून्य कहा जाता था जो की एक संस्कृत शब्द हैं. जीरो का कॉन्सेप्ट और इसकी परिभाषा सबसे पहले 628 ईसवी में भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दी. इसके बाद यह भारत में विकसित होता रहा. बाद में 8वी शताब्दी में शून्य अरबो जी सभ्यता में पहुचा जहा से इसे आज का रूप ‘0‘ मिला.
अन्त में जाकर 12वी शताब्दी के के करीब यह यूरोप में पहुचा और यूरोपीय गणना में सुधार हुआ. यानी की कुल मिलाकर देखा जाए तो हमारे देश का ही जीरो के अविष्कार में सबसे बड़ा योगदान हैं.
आर्यभट्ट का शून्य के अविष्कार में क्या योगदान हैं ?
काफी सारे लोग मानते हैं कि सुनने का आविष्कार भारत के लोकप्रिय गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने किया था. यह बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि आर्यभट्ट वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शून्य की अवधारणा दी थी.
आर्यभट्ट का मानना था कि एक ऐसा अंक होना चाहिए जो दस अंकों के प्रतीक के रूप में दस का प्रतिनिधित्व कर सकता है और एकम अंकों के रूप में शून्य (जिसका कोई मान ना हो) का प्रतीक बन सके.
यानी कि आर्यभट्ट ने शून्य की अवधारणा दी थी और उसके बाद छठवीं शताब्दी में 0 के सिद्धांत दिए. आर्यभट्ट ब्रह्मगुप्त के अलावा चुन्नी के आविष्कार का श्रेय एक और भारतीय गणितज्ञ को दिया जाता है जिनका नाम श्रीधराचार्य था. श्रीधरचार्य ने 8 वीं शताब्दी में भारत में शून्य के संचालन का आविष्कार किया और इसके गुण स्पष्ट किये.
शून्य का खोज किसने किया?
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